Shivastakam PDF

शिवाष्टकम् (Shivastakam PDF): शिव की महिमा

Last Updated on March 11, 2023 by Admin

शिवाष्टकम् एक प्रसिद्ध शिव स्तुति है, जो भगवान शिव की महिमा को समर्पित है। हमारे Shivastakam PDF को मुफ्त में डाउनलोड करें

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Shivastakam-Lyrics-PDF

इस स्तुति के आठ श्लोकों में शिव की विभिन्न पहलुओं का वर्णन किया गया है जैसे कि उनकी शक्ति, कृपा, दया और संयम आदि। शिवाष्टक को सुनने या पढ़ने से शिव की आराधना की भावना में उत्साह और शांति उत्पन्न होती है।

जय शि व शंकर, जय गंगा धर, करुणा कर करता र हरे। ।
जय कैला शी , जय अवि ना शी , सुखरा शि सुखसा र हरे ।।
जय शशि शेखर, जय डमरूधर, जय जय प्रेमा गर हरे। ।
जय त्रि पुरा री , जय मदहा री , अमि त, अनन्त, अपा र हरे।।।
नि र्गुण जय जय, सगुण अना मय, नि रा का र सा का र हरे।।
पा रवती पति हर हर शम्भो , पा हि पा हि दा ता र हरे ।।1।।


जय रा मे श्वर, जय ना गेश्वर, वैद्यना थ, केदा र हरे ।।।
मल्लि का र्जुन, सो मना थ जय, महा का ल ओंका र हरे।।
त्रयम्बकेश्वर, जय घुश्मेश्वर, भी मेश्वर, जगा ता र हरे।।
का शी पति श्री वि श्वना थ जय, मंगलमय, अघहा र हरे॥
नी लकण्ठ जय, भूतना थ जय, मृत्युञ्जय अवि का र हरे। ।
पा रवती पति हर हर शम्भो , पा हि पा हि दा ता र हरे ।।2।


जय महेश, जय जय भवेश, जय आदि देव, महा देव वि भो । |
कि स मु ख से हे गुणा ती त, प्रभु तव अपा र गुण वर्णन हो ।।
जय भवका रक ता रक, हा रक, पा तक-दा रक शि व शम्भो ।।
दी न दुः खहर, सर्व सुखा कर, प्रेम-सुधा धर दया करो ।।।
पा र लगा दो भवसा गर से, बन कर कर्णा धा र हरे।
पा रवती पति हर हर शम्भो , पा हि पा हि दा ता र हरे ।।3।।


जय मनभा वन, जय पति तपा वन, शो क नशा वन शि वशम्भो ।
वि पद वि दा रन, अधम उद्धा रन, सत्य सना तन शि वशम्भो ।।
सहज वचनहर, जलज नयनवर, धवल-वरन-तन शि वशम्भो ।
मदन-कदन-कर, पा प-हरन-हर, चरन-मनन-धन शि वशम्भो ।।।
वि वसन, वि श्वरूप प्रलयंकर, जग के मूला धा र हरे।
पा रवती पति हर हर शम्भो , पा हि पा हि दा ता र हरे ।।4।।

भो ला ना थ कृपा लु, दया मय, औढरदा नी शि व यो गी ।
नि मि ष मा त्र में देते हैं, नव नि धि मनमा नी शि व यो गी ।।
सरल हृदय, अति करुणा सा गर, अकथ कहा नी शि व यो गी ।।
भक्तो पर सर्वस्व लुटा कर, बने मसा नी शि व यो गी ।। ।
स्वयं अकिं चन, जन मन रंजन, पर शि व परम उदा र हरे।
पा रवती पति हर हर शम्भो , पा हि पा हि दा ता र हरे ।।5।।


आशु तो ष ! इस मो हमा यी नि द्रा से मुझे जगा देना ।।
वि षम वेदना से वि षयों की मा या धी श छुड़ा देना ।।
रूप सुधा की एक बूंद से जी वन मुक्त बना देना ।
दि व्य ज्ञा न भण्डर युगल चरणों की लगन लगा देना ।।
एक बा र इस मन मन्दि र में की जे पद-संचा र हरे।।
पा रवती पति हर हर शम्भो , पा हि पा हि दा ता र हरे ॥6॥


दा नी हो दो भि क्षा में, अपनी अनुपा यनी भक्ति प्रभो ।
शक्ति मा न हो दो अवि चल, नि ष्का म प्रेम की शक्ति प्रभो ।
त्या गी हो दो इस असा र, संसा र से पूर्ण वि रक्ति प्रभो ।।
परमपि ता हो दो तुम अपने, चरणों में अनुरक्ति प्रभो ।।
स्वा मी हो नि ज सेवक की , सुन लेना करुण पुका र हरे।|
पा रवती पति हर हर शम्भो , पा हि पा हि दा ता र हरे ॥7॥


तु म बि न ‘बेकल’ हूँ प्रा णेश्वर, आ जा ओ भगवन्त हरे।
चरण शरण की बां ह गहो , हे उमा रमण प्रि यकन्त हरे।।
वि रह व्यथि त हूँ दी न दु:खी हूँ, दी नदा यल अनन्त हरे। ।
आओ तु म मेरे हो जा ओ, आ जा ओ श्री मन्त हरे ।।
मे री इस दयनी य दशा पर, कुछ तो करो वि चा र हरे।।
पा रवती पति हर हर शम्भो , पा हि पा हि दा ता र हरे ॥8॥

Shivastakam in Sanskrit

प्रभुं प्राणनाथं विभुं विश्वनाथं जगन्नाथ नाथं सदानन्द भाजाम् ।
भवद्भव्य भूतॆश्वरं भूतनाथं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडॆ

गलॆ रुण्डमालं तनौ सर्पजालं महाकाल कालं गणॆशादि पालम् ।
जटाजूट गङ्गॊत्तरङ्गै र्विशालं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडॆ

मुदामाकरं मण्डनं मण्डयन्तं महा मण्डलं भस्म भूषाधरं तम् ।
अनादिं ह्यपारं महा मॊहमारं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडॆ

वटाधॊ निवासं महाट्टाट्टहासं महापाप नाशं सदा सुप्रकाशम् ।
गिरीशं गणॆशं सुरॆशं महॆशं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडॆ ॥ 4 ॥

गिरीन्द्रात्मजा सङ्गृहीतार्धदॆहं गिरौ संस्थितं सर्वदापन्न गॆहम् ।
परब्रह्म ब्रह्मादिभिर्-वन्द्यमानं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडॆ

कपालं त्रिशूलं कराभ्यां दधानं पदाम्भॊज नम्राय कामं ददानम् ।
बलीवर्धमानं सुराणां प्रधानं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडॆ

शरच्चन्द्र गात्रं गणानन्दपात्रं त्रिनॆत्रं पवित्रं धनॆशस्य मित्रम् ।
अपर्णा कलत्रं सदा सच्चरित्रं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडॆ

हरं सर्पहारं चिता भूविहारं भवं वॆदसारं सदा निर्विकारं।
श्मशानॆ वसन्तं मनॊजं दहन्तं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडॆ

स्वयं यः प्रभातॆ नरश्शूल पाणॆ पठॆत् स्तॊत्ररत्नं त्विहप्राप्यरत्नम् ।
सुपुत्रं सुधान्यं सुमित्रं कलत्रं विचित्रैस्समाराध्य मॊक्षं प्रयाति ॥

शिवाष्टकम् के लाभ

शिवाष्टकम् के जप से व्यक्ति को तनाव से मुक्ति मिलती है और उसकी मानसिक स्थिति शांत होती है। इसके अलावा शिवस्तक का प्रयोग निम्नलिखित लाभों के लिए भी किया जाता है:

  1. शिवाष्टकम का जप करने से मानसिक शांति मिलती है और मन की स्थिति सुधारती है।
  2. शिवाष्टकम के जप से भय और दुख कम होते हैं और सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
  3. शिवाष्टकम के जप से व्यक्ति की ऊर्जा और शक्ति बढ़ती है और वह अपने जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता हासिल करता है।
  4. शिवाष्टकम के जप से भगवान शिव की कृपा मिलती है और वह अपने भक्तों की समस्याओं को हल करते हैं।
  5. शिवाष्टकम के जप से व्यक्ति का मन शुद्ध होता है और वह अपने अंतर में एकाग्रता एवं ज्ञान की अवस्था प्राप्त करता है।
  6. शिवाष्टकम के जप से अंतरदृष्टि विकसित होती है और व्यक्ति अपने अंतर्यामी की पहचान करता है।
  7. शिवाष्टकम के जप से व्यक्ति के शरीर में स्वस्थता और उत्तेजना की भावना उत्पन्न होती है और वह अपने रोगों से मुक्त होता है।

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